कृष्ण तत्त्व

पुस्तक समीक्षा

  - मनोज अरोड़ा
साहित्य क्षेत्र में उपन्यास एवं उपन्यासकार को उच्च स्थान प्राप्त हुआ है, क्योंकि उपन्यास के माध्यम से पाठक को न केवल अद्भुत जानकारी प्राप्त होती है, बल्कि अध्ययन करने वाला पाठक ऐसा महसूस करते हैं जैसे वह उन पात्रों के साथ-साथ चल रहे हों। दूसरी ओर उपन्यासकार को इसलिए सर्वश्रेष्ठ श्रेणी में माना गया है कि वे उपन्यास में दर्शाए गए पात्रों की भूमिका को इतनी तन्मयता एवं गम्भीरता से प्रस्तुत करते हैं जिससे पाठकों का मनोरंजन भी हो और ज्ञान की प्राप्ति भी हो।
अध्यात्म सम्बन्धी उपन्यास की अगर बात करें तो उपन्यासकार को गहन अध्ययन एवं पूर्ण जानकारी के साथ कलम चलानी होती है, क्योंकि जहाँ एक ओर उन्हें समस्त घटनाओं को क्रमानुसार प्रस्तुत करना होता है, वहीं दूसरी ओर भाषाशैली के तारतम्य पर भी पैनीदृष्टि की आवश्यकता होती है। उपन्यास की इस कड़ी में इन्हीं मुख्य बिन्दुओं पर आधारित है युवा एवं प्रतिभाशाली उपन्यासकार नन्दकिशोर द्वारा रचित अध्यात्म पर आधारित उपन्यास कृष्ण तत्त्व।
कृष्ण! जिनके धर्म व अधर्म के युद्ध में कई रूप दिखाई पड़ते हैं, जिनकी इच्छा थी कि धर्म व सत्य पर चलने वालों को उचित न्याय मिले और अधर्म का नाश हो। उपन्यासकार नन्द किशोर ने उक्त उपन्यास में श्रीकृष्ण की शक्ति को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों में बखूबी प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास किया है। उपन्यास में वर्णित सामग्री कुरुक्षेत्र की पृष्ठभूमि एवं धर्मयुद्ध को इंगित करती है, जिसमें नेत्रहीन धृतराष्ट्र की कुछ न देख पाने की मजबूरी है तो दूसरी ओर खुले नेत्रों से सब कुछ देखने वाले भीष्म पितामह की धर्मसंकट में बंधे रहने की गाथा है जो चाहकर भी आँखें बन्द रखने को विवश हैं। कृष्ण तत्त्व को पढ़ते समय पाठक के अन्दर यही जिज्ञासा बनी रहेगी कि इससे आगे क्या होगा?? इसके साथ-साथ जहाँ एक ओर अहं में अन्धे दुर्योधन की गतिविधियाँ हैं तो दूसरी ओर न्यायप्रिय युधिष्ठिर की निष्ठा और सन्तोष। कर्ण मित्रता को निभाने के लिए प्रत्येक गलत कार्य करने को तत्पर रहता है तो अर्जुन धर्म पर चलते हुए अप्रत्यक्ष रूप से स्थिति को संभालने में अपनी भूमिका निभाते हैं। द्रौपदी के समर्पण को शब्दों से व्यक्त कर पाना असम्भव तो नहीं, परन्तु कठिन जरूर है क्योंकि अपने परिवार की खातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर करना और संतोष, धैर्य व भक्ति की परिभाषा तो उनके जीवन से ही मिल सकती है। कुल मिलाकर अध्यात्म में रूचि रखने वाले पाठकों के लिए कृष्ण तत्त्व उपन्यास मील का पत्थर साबित होगा, ऐसा यकीन किया जा सकता है।
उपन्यासकार - नन्द किशोर
प्रकाशक - साहित्यसागर प्रकाशन, जयपुर
मूल्य - दो सौ रुपये मात्र
पृष्ठ - 96