गुजरात चुनाव एवं राहुल गांधी - महावीर कुमार सोनी


गुजरात विधानसभा का चुनाव यूं तो देश के एक राज्य भर की विधानसभा का चुनाव है फिर भी इसने पूरे देश ही नहीं पूरे विश्व का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर रखा है। इस चुनाव के परिणाम जानने के लिए पूरे देश की जनता बेसब्री से इंतजार में है, कब 18 दिसंबर आएगी औऱ कब यह निश्चित होगा कि उस दिन कौनसी राजनैतिक पार्टी के हित में वहां की जनता ने अगले पांच वर्षों हेतु अपना निर्णय सुनाया है।
गुजरात चुनाव के परिणाम चाहे किसी भी दल के पक्ष में आए किन्तु इस चुनाव ने राहुल गांधी का राजनैतिक कद बहुत ऊंचा कर दिया है वहीं लोकतंत्र की मजबूती एवं शासन सत्त्ता को विकेन्द्रित रखने की दृष्टि से भी अहम रोल अदा किया है।
वस्तुतः सत्ता किसी भी दल की हो, उसके विरुद्ध हमेशा एक सशक्त विपक्ष अवश्य रहना चाहिए, जो सत्ता को गलत एवं अनुचित निर्णयों के लिए चेताता रहे, अन्यथा कुछ अरसे बाद किसी भी दल में तानाशाही प्रवर्ति जन्म ले सकती है, जो आमजन के लिए किसी भी स्थिति में सही नहीं हो सकती। ये ही अहम लाभ आमजन के हित में हुआ है जिसमें मृत प्राण होती कांग्रेस में राहुल गांधी ने जान फूँक दी है। अन्यथा पिछले लोकसभा चुनाव में मात्र 44 सीट हासिल होने से कांग्रेस की स्थिति बड़ी दयनीय बनी हुई थी जिसके चलते उसे लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद तक हासिल न हो पाया था।
यद्यपि गुजरात विधानसभा चुनाव का भावी लोकसभा चुनाव से कोई सरोकार नही है किंतु प्रधानमंत्री के गृह राज्य होने एवं गुजरात के विकास मॉडल के प्रचार के रथ पर चलते उनके इस पद पर पहुंचने की एक विशेष भूमिका के चलते, इस चुनाव ने दोनों प्रमुख दलों के लिए अत्यन्त प्रतिस्पर्धी बना रखा था, जिसमें जीत के लिए दोनों दल कितनी प्रकार की रणनीतियां अपना रहे थे, यह किसी से छिपा नहीं रहा है।
राहुल गांधी ने अत्यंत सौम्यता लिए हुए आक्रामक तेवर अपनाते हुए पिछले 22 सालों की भाजपा शासन की गुजरात में उपब्धियोंविकास की बड़ी बातों एवं गुजरात मॉडल के विभिन्न मुद्दो पर अपनी सशक्त भाषण शैली द्वारा भाजपा नेताओं को एक तरह से निरुत्तर सा कर दिया था, जिसके चलते चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में हिंदुत्व, राम मंदिर, पाकिस्तान, आंतकवाद, गुजराती अस्मिता जैसे मुद्दे लाकर  भाजपा नेताओं ने उनकी रणनीति को असफल करने का पूरा प्रयास कर दिया था।
राहुल गांधी द्वारा अत्यंत सशक्त रूप से उठाए गए जी. एस. टी, आरक्षण, नोटबन्दी, बेरोजगारी, विकास, कर्ज माफी, बिजली, पानी जैसे मुद्दे प्रचार के अंतिम दिनों में इस रूप में आगे कमजोर पड़ जावेंगे, यह पूर्वानुमान राहुल गांधी एवं उनकी टीम को पूर्व में ही कर लेना चाहिए था, उन्हें किसी भी क्षण यह नहीं भूलना चाहिए था कि उनका सामना राजनीतिज्ञ रूप से अत्यंत परिपक्व, राजनैतिक रणनीतियां अपनाने में सिद्धहस्त, अत्यंत दूरदर्शी एवं वाकपटु राजनेता के रूप देश की सत्ता संभाले राजनेता नरेन्द्र मोदी के साथ साथ उनके साथ लगी हुई रणनीति बदलने में हर समय माहिर दक्ष नेताओं की टीम से है, जो हर समय कुछ भी बड़ा तीर छोड़ सकते है, जिसके चलते परिणाम उनकी पार्टी के पक्ष में जाते जाते कभी भी बदल सकते हैं।

किन्तु अब कुछ भी नहीं हो सकता, अब तो 18 दिसम्बर का दिन ही बताएगा कि भाजपा एवं आर. एस. एस. की सदी हुई टीम द्वारा प्रचार के अंतिम दिनों में चले बाण कांग्रेस पर भारी पड़े हैं या राहुल गांधी द्वारा शुरू से उठाए जा रहे मुद्दों को ही जनता ने वरीयता दी है।


बहरहाल एक बात अवश्य हुई है कि इस चुनाव ने राहुल गांधी को पूरी तरह स्थापित कर दिया है, वे अपने ऊपर जबरदस्त रूप से प्रचारित कर थोपी गई पप्पू वाली छवि से निकलने में पूरी तरह सफल हुए हैं, पूरी तरह बड़े कद के नेता के रूप में राष्ट्रीय स्तर की छवि बनाने में सफल हुए है, जिसके चलते इस चुनाव को कांटे की टक्कर का बनाने में राहुल गांधी ने पूरी तरह सफलता प्राप्त की है, यह कोई कम उपलब्धि नहीं है। राहुल गांधी के साथ बीजेपी जैसी स्टार प्रचारकों की बड़ी फ़ोर्स नहीं थी, इसके बावजूद काफी अरसे से विभिन्न आरोप प्रत्यारोपों के चलते लगातार जनाधार खो रही कांग्रेस के विरुद्ध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उनकी पूरी टीम द्वारा एक राज्य भर के चुनाव पर जिस तरह फोकस किया गया है, सत्तारूढ़ दल द्वारा पूरी तरह शक्ति झोंक दी गई है, यह राहुल गांधी की स्थापित होती छवि को अपने आप उजागर कर रहा है। यह होना भी चाहिए, शासन सत्ता किसी भी दल के पास रहे, एक मजबूत विपक्ष हमेशा स्थापित रहना चाहिए, आगामी लोकसभा चुनावों हेतु यह अच्छी बात है कि देश में विपक्ष की महत्ता को भी जनता पूरी तरह समझ सकेगी।