भारत
महान विभूतियों की वसुंधरा है। इस वसुन्धरा ने ऐसे अनेकानेक महापुरूषों और
वीरांगनाओं को जन्म दिया है जिन्होंने तरूणाई में ही अपनी अनन्त प्रतिभा का परिचय
देकर विश्व को चमत्कृत किया। इन महान विभूतियों की श्रेणी में राजा राम मोहन राय,
ईश्वर चन्द्र
विद्यासागर, महात्मा
गांधी, पं.
जवाहर लाल नेहरू,
मदन मोहन मालवीय और
सरोजनी नायडू जैसे अनेक महान पुरूष आते हैं।
भारतीय
इतिहास में प्राचीन काल से आज तक अनेक नारी रत्नों ने अपनी शौर्य रश्मियों का आलोक
विकीर्ण किया है। इस परम्परा में सर्वाधिक ज्योतिर्मान छवि है आधुनिक भारत की उस
महान नारी की जिसने विश्व के विशालतम जनतंत्रा पर एक लम्बी समयावधि तक एक छत्रा
शासन किया और विश्व में सर्वाधिक सशक्त महिला के रूप में ख्याति अर्जित की। हमारे
देश की वह गरिमामयी नारी थी श्रीमती इन्दिरा
गांधी।
श्रीमती
इन्दिरा गांधी सादा जीवन, उच्च
विचार की साकार मूर्ति थी। राष्ट्रीयता की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी। उनका कहना था कि
जितनी देखभाल हम अपने शरीर की करते है, उससे कहीं अधिक देखभाल हमें अपनी राष्ट्रीय एकता की करनी
चाहिए।
श्रीमती
गांधी बड़ी स्वाभिमानी थी। वे किसी राष्ट्र से भयभीत नहीं होती थी। सन् 1982
में अपनी अमेरिका
यात्रा के समय उन्होंने तटस्थता तथा गुट निरपेक्षता के सन्दर्भ में भारत का
दृष्टिकोण रखते हुए कहा ’हम महाशक्तियों की गुटबन्दी में शामिल नहीं हो सकते। हम
पूरे विश्व से मित्राता बनाये रखना चाहते है।’
इस
अमेरिका सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में उन्होंने बलपूर्वक विश्वशांति हेतु परमाणु
शक्ति सम्पन्न राष्ट्रों से विनाशकारी अस्त्रों के निर्माण और प्रयोग को बन्द करने
की अपील की। उन्होंने आर्थिक विकास हेतु इसके सदस्य राष्ट्रों को परस्पर
सहयोग करने का भी आह्वान किया।
राष्ट्रीय
एकता बनाये रखने के लिए श्रीमती गांधी ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक भारत के
गौरव को बढ़ाने के लिए भारतवासियों को सचेत किया मानो उन्हें मालूम हो उनकी मृत्यु
के 24 घण्टे पहले भुवनेश्वर
में दिये गये भाषण उनके जीवन का अंतिम भाषण होगा।
हो
सकता है कि उस महान विभूति को अपने स्थूल शरीर के छूटने का पूर्वाभास हो गया हो,
तभी तो उन्होंने ऐसी
सरगर्मी के साथ मार्मिक शब्दों में अपने देशवासियों से एकता बनाये रखने पर तथा देश
की आंतरिक तथा बाह्य शत्राुओं से सामना करने की अपील करते हुए यहां तक कह डाला-मुझे चिंता नहीं कि मैं जीवित रहूं या न
रहूं। यरि राष्ट्र की सेवा में मैं मर भी जाऊं तो मुझे इस पर गर्व होगा। मुझे
विश्वास है कि मेरे रक्त की एक-एक
बूंद से अखण्ड भारत के विकास में मदद मिलेगी और यह सुदृढ़ तथा गतिशील बनेगा। उनके
सम्बन्ध में कहीं गयी यह पंक्तियां पूर्णतया सत्य हैं। (युवराज)