नोटबंदी और जीएसटी के सबक - लेख - रतिकांत सुमन

बाजार में अफरा तफरी, बैंकों में मारामारी का माहौल शुरू हो गया। उसके अगले दिन हमारे पिताजी की मृत्यु हो गई और हम लोग उनकी अंतिम क्रिया की सकुशल समाप्ति की प्रक्रिया में लग गये। परेशानियों के बीच सामाजिक प्रतिष्ठा भी निभानी थी। बैंकों में लंबी लाइनें लगी थी। महिलाओं को भी अनेक कष्टकारी दौर से गुजरना पड़ रहा था। बीमार आदमी कई बार पंक्ति में खड़ा खड़ा बेहोश होकर गिर रहा था। धीरे धीरे देशभर से सूचना थी कि 100 आदमी पंक्ति में खड़े खड़े मर चुके थे।
मोदी सरकार का यह कड़ा फैसला था। वह किन परिस्थितियों में लिया गया, क्यों लिया गया,सरकार की क्या परेशानी थी, इस बात को बहुत अच्छी तरह मोदी सरकार ही समझ सकती है? जनता तो केवल परेशानी को समझ सकती है कि उसे व्यर्थ में लाइनों में खड़ा किया गया। पैसा उसका, मेहनत उसकी, सरकार ने उसके ही पैसे के लिए उसे पंक्ति में खड़ा का दिया। 4000 और 2000 रू के बीच जनता एटीएम और बैंकों में परेशान खड़ी थी। व्यापार में इसका गहरा असर पड़ा। 6 माह लग गए, फिर भी व्यापार अपनी गति नहीं पकड़ सका।
अगले 6 माह में व्यापार को दूसरा झटका दिया गया जिसमें लंबी जद्दोजहद के बाद जीएसटी लाई गई। आम जनता अभी नोटबंदी से उबर भी नहीं पाई थी कि जीएसटी देश में व्यापारियों को एक नई चोट देने के लिए तैयार हो गई। दरअसल जीएसटी में खोट नहीं है। खोट है उसके क्रियान्वयन की स्थिति में। देेश में एक टैक्स प्रणाली हो, इस पर मैं अनेक आलेखों पर बीस वर्षों से लिखता रहा हूं, इसलिए मैं यह नहीं कह सकता कि जीएसटी खराब है लेकिन मैं इसकी यह परिणति नहीं चाहता था कि जनता और व्यापारी त्राहि-त्राहि करने लगे।
जीएसटी को इतना पेचीदा बना दिया गया है कि सरकारी उपक्रमों को इसको समझने में दो वर्ष लग जाएंगे। रोज अरूण जेटली को एक बयान देना पड़ रहा है कि ऐसा नहीं है कि जीएसटी में सुधार की गुंजाइश नहीं है। जैसे जैसे सुझाव मिलेंगे, सुधार किये जाएंगे। दरअसल पेंच इसी वक्तव्य में है। बीेच बीच में अनेेक मंत्रियों और नेताओं को सलाह देनी पड़ रही है कि वस्तु और सेवा कर की इन वस्तुओं पर ज्यादा कर लग रहा है। जैसे हाल में बिहार के उपमुख्यमंत्राी सुशील मोेदी को वित्तमंत्राी को सलाह देनी पड़ी थी कि कपड़ा आदि पर जीएसटी घटाया जाये लेकिन मुझे लगता है कि जीएसटी पूरेे विचार-विमर्श के बाद क्यों नहीं लागू किया गया? एक साथ जनता और व्यापारियों पर दो तरफा मार क्यों की गई।
एक ओेर आपने नोटबंदी की। जनता और व्यापारियों की कमर तोड़ दी। दूसरी ओेर जीएसटी लागू किया, वह भी अधूरा और अपूर्ण। आपको पता होना चाहिए भारत में सरकारी सेक्टर में सभी नौकरियां मिलाकर 2 करोड़ से 3 करोड़ लोग ही नौकरी हैं। 2 करोड़ और अधिक लोग होंगे जो प्राइवेट सेक्टर या व्यापार जगत से नौकरी पाते होंगे। 3 करोड़ के आसपास छोटी दुकानें हैं जिनकीे मासिक कमाई 1500 से 15000 तक की होगी क्योंकि ग्रामीण स्तर पर जो दुकानें हैं, उनकी बिक्री की विकट समस्या है। वे कुछ कमा ही नहीं रहे हैं। देश की आबादी आज 1 अरब 30 करोड़ हो गई है। 50 करोड़ की आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन सेक्टर्स पर निर्भर हैं लेकिन शेष 80 करोड़ की आबादी की कमाई किसानी, बेरोजगारी, अपंगता,बीमारी है। इनमें करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके पास किसी माध्यम से पैसा आनेे का साधन नहीं होता है। वही समाज के अंतिम लोग हैं।
अब सवाल उठता है कि इतनी आर्थिक मारामारी में देश को एक अनिश्चितता की स्थिति में डालना,एक भ्रमित करप्रणाली लागू करना जो जटिल हो और साथ में दिग्भ्रमित हो तो देश को गर्त में ही तो डाला जा सकता है। अब इस कर प्रणाली का एक नमूना देखिए। सरकार ने सौंदर्य प्रसाधन पर 28 प्रतिशत का अधिकतम कर लागू किया है। ग्रामीण महिला लाखों का हार तो पहन नहीं सकती। 10 रू की कान की बाली देता है। वह 2 रू उस पर कमाएगा, 10/$2$3.36़ बराबर 15.36 अर्थात वह 16 रू में मिलेगा।
होटल बिजनेस को ले लीजिए। पटना, मुंबई आदि में स्टूडेंट को टिफिन से भोजन उपलब्ध होता है। 2000 में दोनों वक्त का भोजन मिल जाता है। सरकार ने 12 प्रतिशत का टैक्स लगाया है। वित्त विभाग से कोई व्यक्ति प्रश्न करता है कि क्या भोजन पर भी कर लगेगा? हां जो होटल पर है वही कर, अर्थात 2000 मासिक भोजन पाने वाले से मासिक भोजन परोसने वाले को मेहनताने के रूप में 150 से 200 रू की ही बचत होती होगी। उस पर आपका 12 प्रतिशत कर अर्थात 2000 पर 240 रू, मेहनत करने वाले को 150 रू। इस कर प्रणाली में मेहनत करने वाला खाएगा क्या और टैक्स क्या चुकाएगा।
दूसरी ओर वित्त मंत्रालय एक ओर कहता है कि 20 लाख से कम वार्षिक टर्न ओवर वाले को पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है। दूसरी ओर मैं झारखंड का विज्ञापन देख रहा था- उसमें विज्ञापन था 20 लाख से कम टर्न ओवर वाले को भी पंजीकरण लेना आवश्यक है। किसी राज्य में सीमा कुछ, किसी राज्य में कुछ , तो एक समान कर प्रणाली है कहां? 20 लाख से कम टर्न ओवर वाला जब पंजीकरण लेगा नहीं तो अन्य राज्य से वह माल कैसे लाएगा। इसलिए लोग माल भी नहीं ला रहे हैं। जीएसटी बिलकुल दिग्भ्रमित अवस्था में है। 20 लाख से कम टर्नओवर वाले कैसे अपना काम करेंगे, उसके लिए कोई मार्गदर्शन नहीं है।
सरकार ने जनता को सुविधा दी है या फिर से उसे जीएसटी को पढ़ने के लिए एम.,बी.ए करने के लिए कह रही है, इसका पता नहीं चल रहा है। दूसरा जनता को लग रहा है सरकार में सभी तुनक मिजाज मंत्रियों के ऊपर देश का भार छोड़ दिया गया है। अभी हाल में जब यशवंत सिन्हा भूतपूर्व वित्तमंत्राी ने कहा था कि नोटबंदी और जीएसटी से वर्तमान सरकार ने अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है, तो इस पर अरूण जेटली का यह बयान कि यशवंत सिन्हा जी एक ऐसे वृद्ध बेरोजगार हैं जो 80 साल में अपने लिए रोजगार ढूंढ रहे हैं।
मैं जेटली साहब से कहना चाह रहा हूं आप यशवंत सिन्हा की चिंता न करें। वे भूखे नहीं मर रहे हैैं। आप उन युवाओं की चिंता करें जिन्हें आपने वादा किया था कि रोजगार देंगे। दूसरा, आप से जनता ने नहीं कहा था कि आप बुलेट टेªन दें। जनता तो केवल रोजी-रोटी चाहती है। उसकी रोजी-रोटी भी आप छीन रहे हैं। आप जनता पर यह आरोप नहीं लगायें कि जनता को विकास चाहिए तो पैसा तो देना ही होगा। जनता ने आपसे विकास नहीं मांगा है, आपने उन्हें गुजरात मॉडल दिखाया है। उन्हें सब्जबाग नहीं दिखाइये।

आज जी.डी.पी लगातार एक वर्ष से 5.7 की न्यूनतम स्थिति में आ गई है। 2 प्रतिशत विकास दर गिरना शुभ संकेत नहीं है। इसे अच्छी स्थिति में लाने में तीन वर्ष से कम का समय नहीं लगेगा। सरकार अब ऋण आदि देकर जनता की जेब भरना चाह रही है। फिर सरकार भी ठन ठन गोपाल हो जाएगी। अच्छा होता कि यह स्थिति आती ही नहीं।  जीएसटी को जटिल नहीं सरल बनायें अन्यथा आप में और जजिया लगाने वाले औरगंजेब में क्या अंतर रहेगा? (युवराज)