कोविड-19 लॉकडाउन से बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित - एजवेल सर्वे

वैश्विक कोविड-19 महामारी के कारण लागू वर्तमान लॉक डाउन के दौरान बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। इस बात का खुलासा एजवेल फाउंडेशन नामक एनजीओ द्वारा कराये गये एक ताजा सर्वेक्षण में हुआ है। संस्थान वर्ष 1999 से देश में बुजुर्गों के कल्याण और सशक्तिकरण के क्षेत्र में कार्यरत है। सर्वेक्षण के तहत देशभर के 5000 बुजुर्गों के साथ एजवेल के वॉलन्टियरों द्वारा फोन पर बातचीत की गई थी। सर्वेक्षण का उद्देश्य बुजुर्गों के जीवन पर वर्तमान लॉक डाउन से उपजी स्थिति के प्रभावों का आकलन करना था। 
सर्वेक्षण आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, 

  • 70ः बुजुर्ग या तो पहले से ही स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का सामना कर रहे थे या वर्तमान कोविड-19 लॉकडाउन प्रतिबंधों के कारण उन्हें अपना स्वास्थ्य खराब होने का डर सता रहा है। सर्वेक्षण की अन्य मुख्य खोजें इस प्रकार हैं, 
  • लगभग 55ः बुजुर्ग उत्तरदाताओं ने कहा कि वर्तमान लॉक डाउन स्थिति उनकी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। ऐसे बुजुर्गो में से 75ः ने कहा कि उन्हें अपने डॉक्टर से व्यक्तिगत तौर पर न मिल पाने के कारण संतोष नहीं मिल पा रहा है। ऐसे बुजुर्ग रोगियों में से 43ः नियमित रूप से पैथोलॉजिकल चेक-अप करा रहे थे, और उन्हें अचानक अपने चेक-अप बन्द कराने पड़े। 
  • 25ः बुजुर्गों ने कहा कि लॉक डाउन से उनकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति पर कोई खास प्रभाव नही ंपड़ा है। 5ः बुजुर्गों ने कहा कि लॉक डाउन नियमों के परिणामस्वरूप स्वच्छ व प्रदूषणमुक्त वातावरण के कारण उनकी स्वास्थ्य स्थिति में सुधार हुआ है। 
  • 44ः बुजुर्गों के अनुसार, रोजमर्रा की दवाओं /फिजियोथेरेपी तक पहुंच न हो पाना उनके सामने सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चुनौती बन चुकी है। 
  • 34ः उत्तरदाताओं के अनुसार चिंता, अनिद्रा, भूख की कमी और शारीरिक गतिविधि की कमी सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संबंधी चुनौती रही। 
  • सर्वेक्षण के दौरान, आधे से अधिक 1⁄4लगभग 54 प्रतिशत1⁄2 बुजुर्गों ने स्वीकार किया कि कोरोनोवायरस लॉक डाउन होने के कारण उनका सामाजिक जीवन गड़बड़ा गया है। इन बुजुर्गों में, 71ः ने दावा किया कि वे आजकल किसी से मिलने या बातचीत करने से डरते हैं। 
  • सर्वेक्षण के लिए बुजुर्गों के साथ बातचीत के दौरान, वॉलन्टियरों ने महसूस किया कि अधिकांश बुजुर्ग इस नई महामारी के कारण उदास हैं। उन्होंने फोन पर बात करते समय अपना डर, चिंता और यहां तक कि वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों पर अपना गुस्सा भी प्रकट किया। 
  • सर्वेक्षण के दौरान, पाया गया कि 54ः बुजुर्ग उत्तरदाता अपने युवा परिजनों (बच्चों/नाती-पोतों आदि) के साथ रह रहे थे, जबकि 33ः अपने पति/पत्नी के साथ रह रहे थे और 13ः उत्तरदाता लॉक डाउन के दौरान बिल्कुल अकेले रह रहे थे। । 
  • 45ः उत्तरदाताओं, जो अपने बच्चों/नाती-पोतांे और अन्य युवा परिजनों के साथ घर पर रह रहे थे, ने स्वीकार किया कि लॉक डाउन ने पीढ़ियों के बीच की खाई को पाटने में मदद की है। हालाँकि, 55 प्रतिशत इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे कि लॉक डाउन अवधि के दौरान अंतर-पीढ़ीगत अंतराल कम होने में मदद मिली है। 
  • लॉक डाउन अवधि के दौरान, 66ः बुजुर्ग उत्तरदाताओं ने दावा किया कि व्यक्तिगत अहम, हितों और दृष्टिकोण के संघर्ष के कारण उनके पारस्परिक संबंध प्रभावित हुए हैं। 
  • 23ः उत्तरदाताओं के अनुसार, आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी उपकरणों की लोकप्रियता के कारण परिजनों के पारस्परिक संबंधों पर बुरा प्रभाव पड़ा है। 
  • 31ः ने दावा किया कि परिवार के बुजुर्ग सदस्यों पर युवा परिजनों की अत्यधिक निर्भरता के कारण रिश्तों में कड़वाहट आयी है। 
  • 20ः बुजुर्गों ने दावा किया कि कामकाजी युवा परिजनों के 24-घंटे घर पर रहने के कारण उनके पास खुद के लिए कोई जगह नहीं बची है, जो उनकी खास चिंता है और इससे उनके आपसी रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं। 
  • 15ः बुजुर्गों ने कथित तौर पर स्वीकार किया कि बुढ़ापे में उनकी विशेष जरूरतों की उपेक्षा की जा रही है 
  • 11ः उत्तरदाताओं ने कहा कि वे परिवार के युवा सदस्यों के आत्म-केंद्रित रवैये से अत्यधिक असंतुष्ट हैं 
  • एक दिलचस्प खोज में पाया गया कि अपने परिजनों के साथ रहने वाले 59ः बुज ुर्ग, अपने परिवार के बीच भी मनोवैज्ञानिक अकेलापन/अलगाव महसूस कर रहे हैं। इस स्थिति के प्राथमिक कारण थे - परिवार के युवा सदस्यों द्वारा उपेक्षा, आपसी संबंधों में खटास, बुजुर्गों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, परिजनों में कुंठा का बढ़ता स्तर, आदि। 
  • 65ः बुजुर्गों ने शिकायत की कि लॉक डाउन के कारण उन्होंने अपनी आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और यहां तक कि कुछ हद तक गरिमा भी खो दी है, क्योंकि उन्हें अपनी छोटी-मोटी जरूरतों के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। 
  • 38ः बुजुर्गों के अनुसार उनकी अधूरी उम्मीदें अब उनके रिश्तों पर हावी हो रही हैं। 
  • लगभग हर दूसरे बुजुर्ग व्यक्ति (51%: उत्तरदाताओं) ने दावा किया कि लॉक डाउन अवधि के दौरान उनके मानवाधिकारों का हनन हो रहा है, उन्हें दुर्व्यवहार/उत्पीड़न 1⁄4मानसिक या शारीरिक1⁄2/धमकी/प्रताड़ना/उपेक्षा/अपमान का शिकार होना पड़ रहा है। 


इस अवसर पर एजवेल फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष श्री हिमांशु रथ ने कहा, ‘‘वर्तमान कोविड-19 लॉक डाउन संकट के कारण, अधिकांश बुजुर्ग संघर्ष कर रहे हैं और अपने जीवन में एक अजीबोगरीब स्थिति का सामना कर रहे हैं। बुजुर्ग खुद को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। जो अकेले रह रहे हैं उनके सामने व्यावहारिक समस्याएं हैं और जो बुजुर्ग परिवारों के साथ रह रहे हैं, वे मनोवैज्ञानिक संकट का सामना कर रहे हैं। कोरोनोवायरस के मौजूदा तनाव युक्त माहौल में, बुजुर्ग आश्वस्त चिकित्सा और वित्तीय सहायता न मिलने और सामाजिक मेल-मिलाप न होने, आत्मनिर्भरता, आत्म-सम्मान, गरिमा में कमी आने के कारण उदास हो रहे हैं।‘‘ श्री रथ ने आगे कहा, ‘‘ऐसे हालात में सरकार को कुछ विशेष सहायता व त्वरित राहत पैकेजों की घोषणा करके बुजुर्गों की मदद करनी चाहिए।‘‘ 
सर्वेक्षण की खोजों के आधार पर सरकार को निम्न सुझाव दिये गये हैं- 

  • बुजुर्गों के लिए हेल्पलाइन शुरू करना 
  • बुजुर्गों के लिए गारंटी युक्त सब्सिडी/ऋण और जीएसटी छूट जैसे बुजुर्गाें के लिए - भोजन, आवास, देखभाल और चिकित्सा सेवाओं की घोषणा 
  • सीनियर सिटीजन्स होम्स के लिए सब्सिडी या ऋण और सहायता प्रदान करना 
  • बुजुर्ग रोगियों के लिए देखभाल केन्द्रों या सेवाओं की स्थापना 
  • बुजुर्गों के लिए किसान सम्मान निधि के तहत 6000 रु की सहायता प्रदान करना 
  • अनपढ़ शहरी और ग्रामीण बुजुर्गों में जागरूकता बढ़ाना और कोविड-19 महामारी के खिलाफ सुरक्षा उपायों को समझाने के लिए विशेष प्रयास करना 
  • बुजुर्गों के लिए विशेष सार्वजनिक वितरण केन्द्र स्थापित करना 
  • आवश्यक वस्तुओं (चावल/गेहूं, दाल, प्याज, मसाला, तेल, आलू) के पैकट वितरित करना 
  • बुजुर्ग देखभाल क्षेत्र के बारे में जागरूकता पैदा करना और बुजुर्ग देखभाल उद्योग के विकास के लिए नीतियां बनाना 
  • बुजुर्गों की निगरानी के लिए घरेलू स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की व्यवस्था करना 
  • बुजुर्गों के लिए चिकित्सा बीमा जैसी आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करके सुरक्षित वातावरण का निर्माण करना।