राजस्थान के गौरव एवं संस्कृति गणगौर पर्व पर कुछ संगीता गर्ग, सचिव राजस्थान कॉंग्रेस कमेटी द्वारा स्वरचित पंक्तियाँ

कोरोना गणगौर उत्सव

लुगायां रा श्रृंगार अनोखा,
अनोखी ईसर गौरां री प्रीत|
आज अकेली गणगौर ने पूजूं ,
संस्कृति री नहीं रही ये रीत|

ना थी घेवर की मिठास,
ना था महिलाओं में उल्लास|
कुछ सजी थी ,कुछ बुझी थी,
महिलायें समूह में नहीं दिखी थी|

मिठाई की दुकान खुली नहीं थी ,
बिन घेवर के थाली सजी थी ,
मन कर रहा सोच विचार ,
बिना घेवर के पहली बार ,
कैसे मैं पूजूं गणगौर|

पड़ोसने भी फीकी मुस्कुरा रही थी ,
दूर से एक दूजे को ताक रही थी|

गीत किसको आते हैै ,
ये भी पूछ नहीं पा रही थी|

गीत हमको आते नहीं ,
बाहर जा सकते नहीं|

झट से तभी फोन उठाया ,
क़िसी ने माँ को लगाया ,
क़िसी ने दादी ,नानी को ,
क़िसी ने सास,ताई को लगाया ,
क़िसी ने चाची को|

 ये सब मैं देख ना पायी ,
सुन कर दिमाग़ में आयी|
गूगल पर सर्च करूंगी ,
यूट्यूब पर सुन लूंगी|
मजे से सुने गीत और 
सुनी गणगौर की कहानी|

मन मेरा उछड़ा था ,
बस एक दुःखड़ा था|
कोरोना का कहर था ,
इसलिए सबने ठाना था| 
ना होंगे एक साथ समूह में ,
इसको तो हराना हैै|

अगली गणगौर का इंतजार करेंगे,
परिवार,समाज, देश की रक्षा हम करेंगे|
गणगौर माता से मांगा वरदान,
कोरोनो को दुर भगाओ|
परिवार, समाज, देश को सुरक्षित और स्वस्थ बनाओ|

आएगी जब गणगौर अगली बार ,
खुशियां लाएगी हजार| 
श्रृंगार करूंगी सौ सौ बार ,
सखियाँ के साथ हम पूजेगें ,
तब गणगौर बारम्बार|