कोरोना गणगौर उत्सव
लुगायां रा श्रृंगार अनोखा,
अनोखी ईसर गौरां री प्रीत|
आज अकेली गणगौर ने पूजूं ,
संस्कृति री नहीं रही ये रीत|
ना थी घेवर की मिठास,
ना था महिलाओं में उल्लास|
कुछ सजी थी ,कुछ बुझी थी,
महिलायें समूह में नहीं दिखी थी|
मिठाई की दुकान खुली नहीं थी ,
बिन घेवर के थाली सजी थी ,
मन कर रहा सोच विचार ,
बिना घेवर के पहली बार ,
कैसे मैं पूजूं गणगौर|
पड़ोसने भी फीकी मुस्कुरा रही थी ,
दूर से एक दूजे को ताक रही थी|
गीत किसको आते हैै ,
ये भी पूछ नहीं पा रही थी|
गीत हमको आते नहीं ,
बाहर जा सकते नहीं|
झट से तभी फोन उठाया ,
क़िसी ने माँ को लगाया ,
क़िसी ने दादी ,नानी को ,
क़िसी ने सास,ताई को लगाया ,
क़िसी ने चाची को|
ये सब मैं देख ना पायी ,
सुन कर दिमाग़ में आयी|
गूगल पर सर्च करूंगी ,
यूट्यूब पर सुन लूंगी|
मजे से सुने गीत और
सुनी गणगौर की कहानी|
मन मेरा उछड़ा था ,
बस एक दुःखड़ा था|
कोरोना का कहर था ,
इसलिए सबने ठाना था|
ना होंगे एक साथ समूह में ,
इसको तो हराना हैै|
अगली गणगौर का इंतजार करेंगे,
परिवार,समाज, देश की रक्षा हम करेंगे|
गणगौर माता से मांगा वरदान,
कोरोनो को दुर भगाओ|
परिवार, समाज, देश को सुरक्षित और स्वस्थ बनाओ|
आएगी जब गणगौर अगली बार ,
खुशियां लाएगी हजार|
श्रृंगार करूंगी सौ सौ बार ,
सखियाँ के साथ हम पूजेगें ,
तब गणगौर बारम्बार|